गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

कभी

कभी धुप में, कभी छाओं में , कभी शहर में, कभी गाँव में।
तुझे ढूंढता फिरूँ दर-ब-दर, कभी इस नगर कभी उस नगर,
थक गए कदम मगर, न तू मिली न तेरी ख़बर।
कहाँ है तेरा ठिकाना बता? कहाँ मिलेगा तेरा पता?
दूर तक है अँधेरा घिरा, जहाँ तक जाती नज़र।