शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

अपना पता

अपना पता ढूंढते - ढूंढते जब बहुत दूर निकल गया तो यह अहसास हुआ की मैं अकेला हूँ। पीछे मुड़ कर कर देखा तो दूर -दूर तक सिर्फ़ अपने क़दमों के निशान थे। कोई तो नहीं था जिसे पुकार लेता। कोई तो नहीं था जिसके साथ कुछ देर अपने - परायों की बात कर लेता। बस था तो मैं और मेरा साया जिसकी मजबूरी थी मेरे साथ चलने की। यदि वोह भी होता स्वतंत्र तो शायद अब तक मेरे साथ न होता । और तब मैं होता एकदम तनहा । अभी तो मैं ये भी नहीं कह सकता की मैं तनहा हूँ। और मेरा पता , उसे ही तो ढूंढ raha हूँ। मैं क्या हूँ ! मेरी pehchaan क्या है! अभी तो कुछ भी पता नहीं। अब rukna भी mushkil है, और चलना भी। rukun तो किसके लिए और chaltaa rahoon तो कहाँ के लिए । न तो कोई मंजिल dikhaee देती है और न कोई hamsafar ।
जिंदगी मिली है तो क्या। jindagi खूबसूरत है तो क्या। जिंदगी jua है तो क्या। जिंदगी maza है तो क्या। जिंदगी neeras है तो क्या। जिंदगी khwab है तो क्या। जिंदगी tajurba है तो क्या। जीना है तो जीना है। जिंदगी का यह सफर कहाँ khatm होगा पता नहीं। जिंदगी मिली है तो जीना है बस जीना है। और जिंदगी bahr इसी jeene men अपना पता ढूंढते rahna है। जब जिंदगी khatm तो सब khatm। यह जीना, यह talaash, अपना thikana , अपना gaon, अपना देश सब paraya। उसके बाद बस shoonya और कुछ नहीं.

बुधवार, 16 जुलाई 2008

ट्रेन लुटेरे

ट्रेन लुटेरे वोह भी बिना हथियार ! स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही धडाधड एक दो नहीं चार पाँच छ: डिब्बे में घुस कर लोगों की जेब से पैसे निकलवाना शुरू कर देते हैं। आनाकानी करने पर गलियों की बौछार । सबसे अधिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है बिहार प्रदेश के यात्रियों को। बेचारे देश के बड़े शहरों में नौकरी करके एक - एक पैसा जोड़ कर घर काम काज के लिए ले कर जाते हैं। पेट भर के खाना नसीब नहीं होता मेहनत की कमाईको ये लुटेरे जबरदस्ती जेब से खींच लेते हैं। और यह लुटेरे एक दो नहीं बल्कि लगभग हर station पर मिल जाते हैं। हमारी जी आर पी भी इनका कुछ नहीं bigaad पाती या यों कहें की इन्हें देख कर भी andekha कर देते हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह ट्रेन लुटेरे कोई और नहीं बल्कि हर स्टेशन और हर डिब्बे में ताली chatkaate heezde हैं जिन के सामने हमारी पुलिस , कानून , हिम्मत सब बौने साबित हो रहे हैं। इनके लिए आज तक कोई कानून नहीं बना । न ही इन्हें किसी का कोई डर या खौफ है। पुलिस वाले इनसे हँसते हुए ठिठोलियाँ करते हैं और टी टीई किनारा कर के निकल जाते हैं। कोई शरीफ आदमी इनके मुंह नहीं लगना चाहता। इसी का फायदा उठाते हैं ये हीजड़े । न औरतों को बख्शते हैं और न आदमियों को । ईश्वर जाने कब इनको कानून के दायरे में लाया जाएगा। जाने कब पुलिस इनके खिलाफ एक्शन लेगी । जाने कब लोगों खास कर गरीबों और बिहार के mehanatkash मेहनत की कमाई की लुटाई बंद होगी.