हम आज भी तुम्हें याद करते हैं। तुम कहाँ छुप गए हो ।
कभी तो मुझे पुकारो कभी तो आवाज दो ।
तुम्हारी वोह आवाज आज भी मेरे कानों को याद है जब तुम मुझे पुकारते थे मेरा नाम अपनी सुरीली मदमस्त कर देने वाली आवाज ।
ऊह!
तुम्हारी वोह सुनहरी मुस्कान आज भी जहन में तरोताजा है ।
जब भी आँखें बंद करके फुर्सत के लम्हों में तुम्हें अपने पलकों के सहारे ढूँढने की कोशिश करता हूँ,
तुम आ ही जाती हो किसी हवा के झोंके के मानिंद एक लम्हे में ही मेरे मन के आँगन में सावन की पहली बारिश की तरह बरस जाती हो और मैं तुम्हें दोबारा खोने के अहसास के डर से आंखों को कस कर भींच लेतa