शनिवार, 28 जून 2008

हम आज भी तुम्हें याद करते हैं। तुम कहाँ छुप गए होकभी तो मुझे पुकारो कभी तो आवाज दोतुम्हारी वोह आवाज आज भी मेरे कानों को याद है जब तुम मुझे पुकारते थे मेरा नाम अपनी सुरीली मदमस्त कर देने वाली आवाजऊह! तुम्हारी वोह सुनहरी मुस्कान आज भी जहन में तरोताजा हैजब भी आँखें बंद करके फुर्सत के लम्हों में तुम्हें अपने पलकों के सहारे ढूँढने की कोशिश करता हूँ, तुम ही जाती हो किसी हवा के झोंके के मानिंद एक लम्हे में ही मेरे मन के आँगन में सावन की पहली बारिश की तरह बरस जाती हो और मैं तुम्हें दोबारा खोने के अहसास के डर से आंखों को कस कर भींच लेतa