शनिवार, 14 जुलाई 2012

धोखेबाज हर जगह हैं।

ज मौसम   मनभावन था . मैं रोज की तरह अपने ऑफिस  से निकला . हलकी हलकी फुहार पद रही थी। भीगते तन में मन प्रसन्नता से नाच रहा था। बाज़ार से कुछ सामान लेना था, कुछ दवाइयां लेनी थी, सो सब सामान लेकर घर की और चल दिया। मैं रोड से मुड़ते समय कुछ त्रुच्कों ने मेरा रास्ता रोक लिया और मुझे रुक जाना पड़ा। मेरे रुकते ही एक आदमी मेरे पास आकर  लगा सर मैं और मेरे बच्चे भूखे है। उसने एक औरत और बच्ची की तरफ इशारा किया मैंने उनकी तरफ देखा फिर उससे मुखातिब हुआ। क्या  हुआ तुम्हारे साथ' मैंने उससे पूछा वोह बोला मैं यहाँ एक ठेकेदार के पास कम करता था वो मुझे महारास्त्र से लेकर आया था, मैंने काफी दिन उसके पास काम किया। उसने आज बिना पासे दिए मुझे भगा दिया। अब मेरे पास इतने पैसे नहीं है की मई अपने घर वापस जा सकूं। मैंने पूछा - तुम क्या  हो वो बोला- मैं अपने घर जाना चाहता हूँ यदि आप मेरी मदद कर  तो मैं आपका अहसान कभी नहीं भूलूंगा मैंने पूछा कितने पैसे लगेंगे तो वो बोल 250 रुपये एक  आदमी किराया है , यदि एक आदमी का भी किराया मिल जाये तो मैं अपनी पत्नी का  ले कर चला जाऊंगा। साथ ही उसने कई तरहकी कसमे खाई और ये साबित करने की कोशिश की वो वाकई गेनुइने आदमी है। वो कोई धूर्त नहीं है। उसकी आँखों की करुना देखकर मुझे लगा की उसकी मदद कर देनी चाहिए। सो मैंने 300 रुपये निकल कर उसको दे दिए तब वोह पीछे पद गया की मई उसे दो सौ रुपौये और दे दूं जिससे दोनों का टिकेट ले सके।मैं कुछ अचकचाया लेकिन वोह 3कहने लगा आप मुझे अपना कार्ड दे दीजिये मैं जाते ही आपके पैसे भेज दूंगा। मैंने आज तक किसी से पानी भी नहीं  माँगा है लेकिन बच्चो के कारन मुझे हाथ फैलाना पड़ रहा है।  मुझे बच्चे पर दया आ गयी और मैंने उसे 200 रुपये और दे दिए। वो अपने बच्चों के साथ चला गया। मैं अपने घर की और चल पड़ा . रस्ते में मैं सोचने लगा की आज मैंने एक आदमी की मदद करके बड़ा अच्चा किया। मैं बड़ा खुश हो रहा था। तभी अचानक मन में सवाल उठा की मैंने जिसकी मदद की वो सही आदमी था या गलत कहीं मेरी मेहनत  की कमाई किसी गलत आदमी के हाथ में तो नहीं चली गई। कुछ और सोचने पर याद आया की ये आदमी एक दिन पहले भी कभी इसी तरह लोगों से पैसे मांग रहा था , तब मैंने अपने साथी से कहा था की देखो ये भी तरीका है दूसरों को मूर्ख  का। कुछ और दिमाग पर जोर डाला तो पूरी इस्तीथी आँखों के सामने घूमने लगी। अब मेरी सारी  ख़ुशी हवा हो गई और मुझे अपनी मूर्खता पर गुस्सा आने लगा। मेरा तनाव बढने लगा। मैं उसे फिर ढूँढने निकल पड़ा। काफी ढूँढने के बाद भी उसका कोई सुराग न  तो झुंझलाता हुआ घर आ गया। पत्नी के पूछने पर मैंने उसे साड़ी बात बताई तो उसके उवाच सुनकर गुस्सा और बढ़ गया। उसका कहना था की सभी आदमी औरत को देखकर ऐसे ही दयावान बन जाते है। मैं काफी देर उसपर चिल्लाता रहा। तब से अब तक मैं खुद को उसकी मदद करने के लिए खुद को कोस रहा हूँ। साथ ही दूसरों की मदद करने का बुखार भी सर से उतर गया, अब सिर्फ भोजन और कपडे की ही मदद करूंगा , पैसे की नहीं ये भी अहद कर लिया। इश्वर उस धूर्त को सद्बुद्धि दे जिससे वो फिर किसी को न ठगे। 

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