सोमवार, 15 अगस्त 2011

आज बहुत दिनोंके बाद जम कर बरसात हुई , मन  में जितने शिकवे गीले थे , 
सब पानी ke वेग ke साथ बह निकले, मैंने भी रोकने की कोई कोशिश नहीं की, 
सोचा बह जाने दो , पता नहीं फीर कभी ऐसी मूसलाधार बारिश हो न हो ,
आज अगर कुछ जमा रह गया तो पता nahi फीर ये जमी हुई काई , छूटे न  छूटे ,
जयादा दीन जमी रही to फीसलन बढ़ जाएगी ,
 तब सँभालते सँभालते भी दो चार रिश्ते फिसल ही जायेंगे ,
जाने fir उनका अंजाम क्या होगा , टूटेंगे या बचेंगे,
बच bhi गए to मैले to ho ही जायेंगे , तब उन्हें man ke कीस कोने में रखेंगे, जीस कोने में रहेंगे, उसी को गंदा का डालेंगे,
इसलिए  सारी गंदगी aaj बरसात ke साथ  bah जाने दे, 
कल सुबह ki गुनगुनी धुप में,सुखा लेंगे सारे रीश्ते, 
कड़वाहट  ki सारी सीलन ko धुप सुखा देगी,
बदबू ko हवा उड़ा ले जाएगी , और tab एक एक rishte  ki तह बना कर उन्हें,
करीने से ह्रदय ki अलमारी me सजा देंगे, 
tab तक man धुलने दे रिश्तों ki गर्द ko ..................